Thursday, September 18, 2008

कोशिश तो करो

हमारे देश का दुर्भाग्य कहे या फिर देश की नियती जैसे हम ईन राजनेताओ के बंधुआ गुलाम है जब जो चाहे वैसा बयान दे कर चला जाता है और हम उसके पीछे भेड की तरह दौडते चले जाते है| हमारे गृह मंत्री जी को ही देख लीजिये, हम मानते है महोदय की किसी का कपडा बदलना उसका अपना नीजी मामला होता है लेकिन ईसके साथ ही आप ईस बात से भी ईन्कार नही कर सकते की आप देश के सबसे असफल गृहमंत्री है| शायद अभी काश्मीर की आग आपने बुझाई भी नही थी की उडीसा मे पिकनीक मनाने पहुच गये और फिर अचानक दिल्ली से बुलावा आ गया| आखिर आप कर क्या रहे है क्या आप उनलोगो को बताने का कष्ट करेंगे जो आपके कपडो के पीछे पडे है|
काश्मीर
शायद आपको ये नही पता के किसी भी राज्य को धारा ३५५ और ३५६ के तहत धमकी दे देने से कुछ नही होता, आपको उसके साथ वहाँ की परिस्थितियाँ भी देखनी पडेंगी, क्या ऐसा लगता है की वहा पर हमारे देश का संविधान असुरक्षित है शायद कोई भी नही कहेगा, आखिर क्यो ईसाईयो की संख्या लगातार बढती जा रही है ग्राहम स्टेंस की हत्या के बाद क्या क्या हुआ था किसी से छिपा नही है| लेकिन सबसे बुरी बात उनका माओवादियो और नक्सलियो से गठजोड है जो सामने आई है| ये सारी बाते एक तरफ लेकिन धर्म परिवर्तन आखिर होता हि क्यो है और होता भी है तो आदिवासियो और नीचे तबके के लोगो का ही क्यो? कही न कही ईसाई समुदाय भी बराबर के जिम्मेवार है ईन सभी के लिये|
उडीसा
आप अब वीरप्पा मोईली जी को देखीये गृहमंत्री से दो कदम आगे बढ गये वो राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात करते है उन्हे पता नही ये उनके हद की बाहर की चीज है प्रतिबंध तो दुर की बात है अगर आपने ईसे छेडा भी तो बुरी तरह फस जायेंगे| आप लोग काश्मीर और उडीसा को ही सम्हाल लो तो बेह्तर है| मै मानता हुँ की कई चीजे बुरी है राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ मे पर अभी ये वक्त नही उन्हे छेडने का|
दिल्ली

Tuesday, August 26, 2008

कुछ तो सोचो

काश्मीर

आज हमारा देश अपने ६० सालो के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है| हमने जिनको अपने देश का प्रतिनिधित्व करने को भेजा वे कुपमँडुक कि तरह बैठ कर अपना राग अलाप रहे है| काश्मीर की समस्या कोई आज की नही है ये हमारे पुरखो के द्वारा विरासत मे दी गई सौगात है और हम पुरे ६० सालो मे भी ईसे सुलझा न सके तो हम दोष किसे दे, मुझे लगता है ईन सभी समस्याओ के पीछे कही न कही हम सब जिम्मेवार है, जब कभी भी हमारे भागीदारी की बात आती है तो हम ये बोलकर पीछे हो लेते है की ईस देश का कुछ नही हो सकता और ईस तरह हम अपने जिम्मेवारि से मुँह चुरा लेते है| पता नही कब तक एसा करते रहेगे, कब तक १ स्वर्ण १ कांस्य १ रजत से संतोष करते रहेगे| १ अरब की आबादी से हम ५० लोग नही निकाल सकते जो कुछ कर सके|

शाहबानो

पुरी दुनियाँ जानती है कि काश्मीर मे क्या हो रहा है, लेकिन हमारे गृह मंत्री जी को वहा पर सब कुछ सही नजर आता है उनका कहना है की संघर्ष समिती जो तिरंगा ले कर नारे लगा रही है और तथाकथित अलगाववादी जो पाकिस्तानी झंडे ले कर मुजफ्फराबाद चलो के नारे लगा रही है दोनो एक है| भगवान उनको सदबुधी दे पता नही हम शुरु से ही रक्षात्मक क्यो हो गये चाहे वो शाहबानो का मामला हो या समान नागरिक संहिता, हमेशा से फैसला वोटो की राजनीति को देखते हुये ही किया गया| आज़ जब जरुरत हमे कडे कदम उठाने की है तो हम ईन्तजार करो की नीति अपना रहे है| ये परिचायक है हमारे घटीया घरेलु नीति की, जब हम अपने घरेलु समस्यओ खुद नही निपटा नही सकते तो आप कैसे सोचते हो की आपकी विदेश नीति पे कोई भरोसा करेगा, हमारे नेता भले ही यह बोलकर पीठ ठोक ले की हम एशिया मे एक बडे भाई की तरह है पर यह हकिकत से कोशो दुर है हमारी स्थिति श्रीलंका और बांग्लादेश कही बद्तर है| कम से कम उनकी पह्चान एक अविकसित देश की तरह तो है पर हम तो अपने आप को कही भी नही रख सकते है| ध्न्य है हमारे देश के नेता और हम जो ईन्हे नेता बनाते है|

Sunday, August 3, 2008

खुदा से मन्नत है मेरी.......कश्मीर दोबारा...

ये गाना मुझे बहुत हि अच्छा लगा शायद आप सभी को भी लगे आशा है


पता नही हमारे और पाकिस्तान के हुक्मरानो के दिमाग मे क्या है, पुरे ६० सालो मे पता तो नही चल पाया कि हम या वो क्या चाहते है| क्या हम चाहते है कि वर्तमान सीमा रेखा को ही अपने देश की सरहद मान ले या फिर हमे अविभाज्य काश्मीर चाहिये, हमे कुछ नही पता कि हमे क्या चाहिये और हम हर साल हजारो जानो कि कुर्बानी दे रहे है आखिर क्यो, हर साल हम अरबो रुपये सिर्फ सुरक्षा पर व्यय करते है क्या हम यही पैसे काश्मीर पर खर्च नही कर सकते, आखिर क्यो हम राष्ट्र्पति शासन से लेकर सारे के सारे प्रयोग किये आखिर हम क्यो असफल हुये, क्या हमने कभी ईसपे गौर किया शायद कभी नही, हमारे कोई भी राजनीतिक दल वोट बैँक की राजनीति से आगे सोच नही पाये, आखिर क्यो ?
अब हम पाकिस्तान के तरफ से सोचते है वे आतंकवाद कि सहायता करते है कि वे चाहते है की काश्मीर आजाद हो जाये, तो हम मानते है कि काश्मीर अगर आजाद हो जाये तो फिर उसके बाद काश्मीर कि स्थिति क्या होगी, क्या काश्मीर को पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश का दर्जा देगा शायद कभी नही, और ये एक बहुत बडा छलावा है क्योकी अभी तक सभी काश्मीरी लोग यही सोचते है की उनका अपना अलग देश होगा, और ईसी के बिना पर वे आतंकवाद का सर्थन करते है और सारे कट्टरपंथी नेता ईसी पर अपनी रोटीयाँ सेकते है|
पता नही कब हमारे हुक्मरानो और पाकिस्तानी नेताओ को समझ आयेगी, सत्ता से बाहर होते ही उन्हे सारी अच्छी बातो की याद आने लगती है पर सत्ता मे रहने पर शायद एक बार भी नही याद करते, और ईन सभी के बीच हम सब लोग पिसने को अभिशिप्त है जैसे.....

डल झील

डल झील

डल झील

Thursday, July 24, 2008

चाईना की रेलवे

६० सालो मे हमने निकाला लोकतन्त्र का फलुदा और चाईना ने बनाया विश्व की सबसे तेज रेलवे सेवा, शिन्हुआ एजेन्सी के मुताबिक ये सेवा १ अगस्त से प्रारम्भ हो जायेगी ईस ट्रेन की रफ्तार होगी ३५०-३५५ कि मी प्रति घन्टा और ईसके केबिन हवाई जहाज के समतुल्य होगें, और एक बार मे ६०० लोगो को ले जाने की क्षमता होगी (यही पर मात खा गये चाईनीज हमारे यहाँ तो कोई सीमा नही बस टी टी बाबु मेहरबान होने चाहिये आप शौचालय मे बैठ कर भी जा सकते है बस आपको टी टी बाबु को खुश करना होगा)


Wednesday, July 9, 2008

परमाणु उर्जा कि राजनीति

परमाणु उर्जा
आज हमारा देश एक बहुत ही बडे राजनैतिक संकट से गुजर रहा है| सारे के सारे राजनैतिक दल, अपने दलगत स्वर्थो से उपर उठ कर सोचने की सामर्थ्य खो बैठे है| चाहे वो भारतीय जनता पाट्री हो या कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दल सभी के सभी एक दुसरे के टांग खीचने के अलावा और कुछ नही कर सकते| किसी भी देश के प्रमुख के पास अंतर्राष्ट्रीय समझौता करने का अधिकार होता है और अगर नही हो तो वो देश का प्रमुख कैसा, लेकिन् भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ सत्ताधारी दल को अपने प्रधानमंत्री पर भी विश्वास नही, हम कह सकते है की ईन सबके लिये कही न कही पुर्ववर्ती प्रधानमंत्री जिम्मेवार है| जिन्होने ईस पद की गरीमा को धुमिल किया, और ईसके लिये सारे के सारे दल एक समान रुप से जिम्मेवार है|

प्रधानमंत्री जापान जी ८ सम्मेलन में जापान गये है, शायद अब ये परमाणु उर्जा मसौदा एक समझौते का रुप ले ही ले| लेकिन हमारे देश के कर्ता धर्ता ये नही कह सकते की ईससे हमारे देश की उर्जा समस्या का समाधान पुर्ण रुप से हो जायेगा| हमे अपने संसाधनो पर ध्यान तो देना ही पडेगा और उससे भी ज्यादा उनका समुचित उपयोग सुनिश्चित करनी होगी ताकी उनका दुरुपयोग रुके|

१. देश की ट्राफिक सिग्नल का सुधार- आयातित तेल का लगभग १०% सिर्फ यहाँ पर जाता है|
२. स्ट्रीट लाईटे - स्ट्रीट लाईटे लगभग पुरे दिन जलती रहती है|
३. घरो का निर्माण - विकसित देशो में घरो का निर्माण ईस प्रकार होता है की उनमे बिजली की खपत कम हो|
४. पब्लिक ट्रांसपोर्ट- ईन्हे बेहतर करने की जरुरत ताकी लोग अपने वाहन का ईस्तेमाल कम करे|
५. कुडा-कचडे का समुचित रुप से प्रबंधन हो- दिल्ली नगर निगम के एक योजना(रिसाईकिल्ड कर एनर्जी बनाने की विधी को) कनाडा ने सहयोग करने क वदा किया है जरुरत है हमे ईस तरह के किसी भी प्रयास को प्रोत्साहित करने की|
६. सौर्य उर्जा के उपर शोध करने की
७. वैकल्पिक उर्जा के नये स्रोतो की खोज करना|
८. लोगो की भागीदारी सुनिश्चित करना

Thursday, May 8, 2008

हमरा गवही मे रहे के विचार बा - भाग दो

गुल्ली डण्टा मे राजेश मस्त पीलीयर था, तभी पता चलता की मास्टर साहब की निंद पुरी हो गई और वे जोर से पुकारते "अरे चल सन अब पढाईयो त कल जा" फिर अपने-अपने बोरे को झाडते और बैठ जाते फिर शुरु होता नागरिकशास्त्र की पढाई, पर पढाई मे मन किसका, सभी का मन तो बैधनाथ चाचा के जामुन के पेड पर लगा होता था,पता नही कैसे-कैसे टाईम पास होता फिर आता खेल की धण्टी और शुरु होता कब्ड्डी की बाजी, सारे पीलीयर अपने अपने कपडे उतार मैदान पहुच जाते देखने वालो की भी कमी नही थी कुबेर भाई सबसे आगे होते थे, लेकिन जैसे ही भौजी की आवाज सुनते की बस पार वहा से, भौजी के मुँह से गालियों की बोछार होती थी, फिर छुट्टी होती और सभी दौडते हुये घर की ओर भागते फरेनवा जामुन
घर पहुचने पर माँ जी थाली परोसते हुये बोलती "सुन खाना खा ल और पापा ओह पार हरीअरी लावे गईल है तु भी जा, जल्दी हो जाई" बस फिर क्या था उस पार पहुचे की दीदी लोग के आवाज और ऊ भी फरेनवा जामुन के पेड के तरफ से बडा धर्म संकट पापा के पास जाये की जामुन खाये, फिर बाद मे सोचे की चल यार पापा से दु-तीन झापड खा लेब लेकीन जामुन त जरुरे खाईब, बस फिर क्या पहुच गये जामुन के पेड के पास और फटा फट पेड के ऊपर चढ जाते बस दीदी का ईन्शट्र्क्शन शुरु- अरे जामुन के पेड अद्राह (कमजोर्)होखलई तनिक सम्भल के न त गिरबे त सब जामुन धईले रह जाई मन भर फरेनवा जामुन खाने मजा ही कुछ और था, जामुन खाने पर जीभ एक दमे काला हो जाता था फिर पकडाने का डर अलग,तो फिर हम नीमक खाते और बाँस के दतुवन के जीभा से तीन चार बार जीभा करते और ऊसके बाद कुछ खा लेतेननकी चाचा तभी ननकी चाचा दीखाई पडते फिर क्या बात! अरे भाई ननकी चाचा के साथ भैस नहलाने का जो मौका मिलता था ऊसका कोई जोर नही वो अपने आप को गाँव मे भैस के मामले मे सुपर आदमी समझते और क्या मजाल की कोई कुछ बोल दे और ऊनका बात काट दे चाहे वो मसला खेती का हो या पंचायती का ऊनके तर्को के आगे सभी पस्त हो जाते, हम शाम को ऊनके साथ घर पहुचते और पापा जी के डाँट से बचत हो जाती थी फिर रात को एभेरेडी लालटेन या फिर दिया मे पढाई होता....

Tuesday, May 6, 2008

हमरा गवही मे रहे के विचार बा

शहर की धमा-चौकडी से अब मन भर गया पुरे बारह साल से एक खानाबदोश की तरहे जिन्दगी जीते जीते अब अधमरा सा हो गया हुँ यहाँ के काले धुयें से तो जैसे एक लगाव सा हो गया है क्योकी ये बिन बुलाये ही मिल जाती है जबकि यहाँ दोस्ती भी पैसे से मिलती है पेशे से एक आई टी प्रोफेश्नल, पेट अब थोडे से आगे की ओर खिसक रही है आज गाव की याद बहुत आ रही थी क्योकी माँ जी बीमार है खेत मे खुरपी चला रही थी हाथ मे लकडी घुस गया ईलाज चल रहा है अजीब कश्मकश है सारे दोस्त आज भी कापसहेडा बार्डर पर एक्स्पोर्ट कम्पनी में काम करते है कुछ यादे है जिन्हे मै समेटना चाहता हुँ पर लगता है उन्हे समेट्ने को शायद मेरे पास वक्त नही ईसलिये सोचा चलो ब्लोग ही लिख डालते है...
कुरवा घाट
अब वो सारी बाते एक बीते हुये परीकथा की तरह लगती है हमारे दिन की शुरुआत माँ जी पुकारने पर ही शुरु होती, तब हम आँख मीचते उठते और सीधे नदी के तरफ, मैदान वगैरह हो कर अब दातुन की बारी आती और हमारे पास होते ढेरो आप्शन नीम,बबुल,बाँस आखिर मे बाँस पर ही मन अटकता क्योकि ये आसानी से नदी के किनारे मिल जाताअब बारी आती नहाने की तो बस पुछीये मत नदी मे जो एक बार कुदे की बस हो गया भोलवा से लेकर राजेश,राकेश्,भगत जी,लंगडा और पुरे मलाही पट्टी के सब के सब कुद पडते और बस सारे खेल शुरु तभी बीच मे कोई बोलता की रे ओह पार के कान्ही वाला लीची देखले एक दमे मस्त साला एगो खईले की बेटा मीठाई भुला जएबे, बस फिर क्या "अन्धा पाओ दुआख" सारे वानर सेना एक साथ कुच कर जातेकुबेर भाई की लीची की पेड् साला पकडा गेले त बोखार छोडा देथुन, थोडी सी खरखराहट की सबके सब नदी में धम्म तभी याद आता की आरे तेरी के लुल्वा के केरा के पेड कटायल है फिर सबके सब गोली लेखा भागते और केला के थम्ब लेके नदी मे कुद जाते फिर मस्त धमाल पता ही नही चलता की कब टाईम निकल गया सब के सब नंग धढंग तभी पापा की गरजती आवाज "रे मास्टर साब आ गेलन तु सब निकलबे की आऊ हम"सबके सब नदी से निकल भागते और गिरते पडते घर पहुचते हमारा स्कुल(आधुनिक)
दादी दुआरे पर खडी रहती आज तोहरा के मार के बोखार गिरा देतऊ तोहर बाप, गेले की न रे जल्दी से स्कुल बस हम झटपट खाते और स्कुल के लिये निकल पडते, सीधे रास्ता न पकड कर जोतल खेत राहे भागते की जल्दी पहुँच जायेपहुचने पर घेघवा वाला मास्टर साहेब सामने- का हो आजकल खुब मस्ती होईत बा तोहनी के, हम सब देखई तारी, हई जा आ एक लोटा पानी ले आव जा... पहली घण्टी हिन्दी से शुरु होती या गणित से उसके बाद हम बेरा(गाव के प्रचलित टाईम देखने का तरीका) को घडी घडी देखते की कब सुरुज भगवान ओकरा छुवस, बस छुला के देरी की टिफिन, सब के सब आपन आपन बोरीया बस्ता ले के फिरार आ ओकरा बाद सीधे घर, खाओ और फिर भागो, अब टीफीने मे गुल्ली ड्ण्टा शुरु....मस्त
क्रमश:.............

Thursday, March 20, 2008

सही समय तिब्बत पर हक जताने का

अगर चीन सिर्फ ईस वजह से अपना हक अरुणाचल प्रदेश पर जताता है की छठे दलाई लामा का जन्म तवान्ग मे हुआ, तो हम यह कह सकते है की मानसरोवर मे हमारे आदी देव भगवान शंकर का निवास स्थान है ये बाते आपको वहाँ के स्थानीय निवासीयों से भी पता चल सकती है और महत्वपुर्ण बात मानसरोवर के पहले स्थित मेजर होशियार सिंह की समाधी आज भी हमारे देश की शौर्य गाथा को दर्शाती है लाह्सा के आगे हर ढाबे पर भारतीय कलाकारो के फोटो मिल जायेंगे डीस्कवरी चैनल पर कलर्स आफ ईण्डिया एक बहुत ही मजेदार डाक्युमेन्टरी जो रात्री ९ बजे आती है आप जरुर देखे, अपने देश को दुसरे देशवासीयों के दृष्टिकोण से समझने के लिये एक महत्व्पुर्ण प्रस्तुति डीस्कवरी चैनल द्वारा



http://www.ecotrek.com.np/tibet/maps.htm
फोटो अज्ञात स्त्रोत


Wednesday, March 12, 2008

पाकिस्तान की करतुत


जी हाँ चीनी निर्माण क्षेत्र की दो प्रमुख कम्पनीयां पाक अधिकृत कश्मीर मे एक बहुत ही बडी पन बिजली परियोजना का ठेका प्राप्त किया है ये परियोजना नीलम नदी के उपर होगी, ईस परियोजना में करीब ४२ किलोमीटर की लम्बी सुरंग होगी जो नीलम नदी के पानी को झेलम नदी तक पहुचायेगी, ये पाकिस्तान के पंजाब और सिन्ध प्रान्त तक जाती है और ईसमे करीब ११०० चीनी ईन्जीनियर एवम हजारो पाकिस्तानी मजदुरो की जरुरत होगी, ईस परियोजना के पुरा होने का प्रस्तवित समय ९३ महीने यानी आठ साल के करीब अगर ये परियोजना पुरी हो जाती है तो निर्माण क्षेत्र में चीन की एक महान उपलब्धी होगी ये दोनो चीनी कम्पनीयां निर्माण क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ कम्पनीयां है यहाँ ध्यान देने की बात है की नीलम नदी का उदगम क्षेत्र भारत में है और ईसी क्षेत्र मे भारत में का भी एक कृष्णा गंगा विधृत परियोजना ईसी नदी के उपर

भारत अपना औपचारिक विरोध जता चुका है की ये परियोजना भारत-पाक नदी बटवारे के अनुकुल नही है

Friday, March 7, 2008

अब अरुणाचल प्रदेश, तवान्ग और आज़ाद काश्मीर भुल जाओ!

जी हाँ मै उसी तवान्ग की बात कर रहा हुँ जहाँ पर १९६२ मे हमारे जवानो ने चीन से मुह खायी थी और पीछे हटे थे, और वही गलती फिर से दुहराई जा रही है फर्क सिर्फ ईतना है की उस समय नेहरु जी की कृपा दृष्टी रही ईस बार देश के सारे नेताओ की बडी खुशी हुई थी की हमारे प्रधानमन्त्री जी चीन से आते ही अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया लेकिन चुक गये, चीन तकनीकी दृष्टिकोण से कभी नही कहा की हमे पुरा अरुणाचल प्रदेश चाहिये ब्लकि सिर्फ तवान्ग पर ही अपना हक जताया और हमारे प्रधानमन्त्री महोदय तवान्ग छोड सभी जगहो की यात्रा की और पुरी तरह से चीन के दावे को आधार प्रदान किया, तवान्ग न जा कर
हमारी देश की नीति उत्तर पुर्व के प्रति शुरु से ही गलत रही है आज भी हम चीनी तैयारीयों के मुकाबले कही नही टिक सकते चाहे वो मुलभुत ढाचे का विकास का मामला हो या सैन्य तैयारीयो का हर दृष्टिकोण से हम कोसो पीछे है चीन से आज भी अगर आप यहाँ के सीमा क्षेत्र से अगर विदेश फोन करते है तो नम्बर कोड चीन का दिखता है उनके सैनिको की तैयारीयाँ देख कर ए के एण्टोनी जी भी घबरा गये हमारे सारे के सारे साजो सामान १९वी सदी के है और हम २१वी सदी के महाशक्ती से लडने का ख्वाब सजो रहे है सबसे बडे दु:ख की बात यह है की तवान्ग के लोग आज भी चीन के कृपा दृष्टी के उपर जीने को मजबुर है, सामान्य जीवन की सारी मुलभुत चीजे उन्हे चीन से आसानी से प्राप्त हो जाते है जबक अपने देश से काफी कठिनाईयों से हमे यह नही भुलना चाहिये की ३० प्रतिशत उर्जा सिर्फ अरुणाचल प्रदेश से आती है और बहुत सारे गैस के खादान एवम पानी के ढेरो स्त्रोत यहाँ पर मौजुद है चीन इस बात को बखुबी समझता है, और उसने मैकमोहन लाईन से सटे और दक्षिण तवान्ग के पास एक विशाल हवाई अड्डे का निर्माण आरम्भ कर दिया है जो कि अगले साल तक पुरी हो जायेगी उसके बाद उनके लिये सैन्य साजो सामन को लाना एकदम आसान हो जायेगा और जबकी हम आज भी अरुणाचल से तवान्ग पहुचने मे कई दिनो का सफर तय करते है
हमारे देश के राष्ट्रीय कोष से सिर्फ ६००० से ७००० हजार करोड दिया जाता है जो की पुरी तरह से नाकाफि है मै सिर्फ ईतना हि कहना चाहता हुँ कि ईतने कम पैसे मे आप हास्पिटल,रोड और संचार सुविधा नही प्रदान कर सकतेहमारे देश के सरकारी ईन्जीनियर्स कहते है की हम मैकमोहन लाईन के पास रोड नही बना सकते क्योकि यह बहुत हि दुर्गम क्षेत्र है और वही पर चीन सिर्फ ३ हफ्ते मे ३० किलोमीटर की रोड दक्षिण मैकमोहन लाईन के पास तैयार कर लेता है वो भी तब जब अंग्रेजी हुकुमत थी जहाँ तक अंग्रेजो ने रेल की पटरीया बिछाई आज भी वही तक ही है तो क्या हमे आजादी मिलने के ईन ६० सालो के बाद मे से सिर्फ एक साल का भी रेलवे बजट उत्तर पुर्व के लोगो को कुछ विशेष नही दे पाया शर्म आनी चाहीये हमारे बजट निर्माताओ को, और वही चीन उन्हे हर सुविधा प्रदान करने को तैयार है मेरा नमन है उत्तर पुर्व के लोगो पर जो ईतनी उपेक्षा के बावजुद भी अपने आप को भारतीय कहते है आज भी हमे ईन क्षेत्रो मे जाने के लिये विशेष अनुमति की जरुरत होती है अभी तक न जाने कितने तरह के विशेष प्रतिबन्ध ये लोग झेल रहे है बावजुद ईसके ईनका दिल अपने देश के लिये वैसे ही धडकता है जैसे आपका और हमारा
आज भी हमारे देश के बहुत कम ही लोग तवान्ग और ईसके आस पास के क्षेत्रो को जानते है ईसका दोष मै आज के मिडियाकर्मीयो को देना चाहुगा जो दिन रात ईस चक्कर मे पडे रहते है की कब राखी सावंत का दिल टुटे और ये लोग उसे जोडे.............

पाकिस्तान का लेख अगली बार....

अब तो जागो !!!!!

Wednesday, February 13, 2008

पी एच डी ईन राजनितिक शास्त्र्


अपने आप को मराठी मानस कहने वाले भुमि पुत्र आज तो उन्होने सारे महाराष्ट्रा का सर उचा कर दिया| जो काम दाउद के गुर्गे, चीनी और पाकिस्तानी नही कर पाये वो काम आपने राज ठाकरे से एक झटके मे करवा डाला, आपके रहते तो हमे तो पाकिस्तानीयो को खोजने की जरुरत ही नही बस इन्तजार है तो सिर्फ आप जैसे महान विभुतियो की जो दो-चार राज ठाकरे की मानसिकता वाले लोगो को प्रोत्साहित करे, फिर ना कोइ व्य्वसायिक राजधानी और ना कोई राजनितिक सारे देश मे समानता की लहर और आप उस लहर पर सवार हो कर दुनिया को दिखा दे की देखो इसे कहते है भारतीय राजनीति जहा ना कोई राजनितिक मुल्य और ना कोई नैतिक मुल्य, बस गन्दी राजनीति के उपर सवार हो कर कोई भी पुरे देश को गन्दा कर सकता है| जी हा अगर आप सभी को दोगली राजनिती सीखनी हो तो हमारे देश के तथाकथित सबसे पुरानी राजनितिक दल कान्ग्रेस से शिक्षा ले सकते है उनके पास पी एच डी की डिग्री है | वैसे अभी उनके मुख्यमन्त्री जी शादी मे व्यस्त है फुर्सत मिलते ही कान्ग्रेस उनको चलता करेगी और फिर बडे ही उचे शब्दो मे बोलेगी हमने ऊचित कारवाई कर दी फिर ईति श्री | भाड मे जाये देश और देशवासी............जय हिन्द्