Tuesday, December 1, 2009

चलो एक ख्वाब देखे गाव वाला


आज सोचा चलो एक ख्वाब देखु
क्या देखु क्या ना देखु
ख्वाबो के प्लाट् तो बनाये भी नही जा सकते
ये अन्तहीन से है ...

ईसी अफरा तफरी मे अपने गाव पहुचा
सोचा ठण्ड् बहुत पड रही है
ईसमे पूआल मे सोने क मजा ही कुछ् और् है
खलिहानो मे पूआल का बडा सा टाल होता है
एक बडा सा मिला जिसमे बच्चा पार्टि नेएक बडा सा सुरन्ग बनाया था
टान्गे पसार कर बडे हि ईत्मीनान के साथ लेट गये
कोई परवाह नही गद्दे की या तकिये की
बस घुस के सो गये

चान्दनी रात और उसका हमसफर फैला सन्नाटा साथ मे झिन्गुर की आवाज
लगा जैसे ए आर् रहमान जी "रोजा के गीत् गुन्गुना रहे हो"
पीपल के पत्तो से गिरते ओस की बुन्दे
ऐसा प्रतीत होता माने सुर और् ताल मिला रहे हो
एक सुकुन सा मिल रहा था ।

पास ही मे लगे घुरे(अलाव)से कुछ पट पट की आवाज आ रही थी
शायद पटपटी(धान के छिलके) जलाया होगा आग को सुबह तक बचाने को
धुये के साथ ईसकी खुश्बु चारो तरफ फैल कर्
एक् सुखद गर्म एहसास दिला रही थी ।

झबरु उसी के पास बैठ कर शायद कुनमुना रहा था
ठण्ड उसे भी लगती है
सोचा उसे भी पास बुला लु
पास जा कर छूआ तो एक तरफ गर्म और् दुसरी तरफ बिलकुल बर्फ था
और वहा से हट्ने को तैयार नही...
बिल्कुल गरीबी की तरह है
सारे लोग हटा रहे पर हटती हि नही ।

जबरदस्ती खिचता हूआ पूआल पर लाया
थोड़ी देर मे वो भी सट कर सो गया
उसे कभी कोई साबुन तेल नही लगाता
कभी नहलाता भी नही कुछ पकडने के चक्कर मे हि वो नदी मे कुदता था
फिर भी वो साफ है ।

हर घर से उसे कुछ ना कुछ मिल् ही जाता
जाडे की धुप मे बच्चे जहा खेल रहे हो उसका ठिकाना होता
बच्चे रोटीया फेक फेक कर खिलाते और झबरु करतब दिखाता ।
जाडे की धुप मे माड भात खाने का मजा हि कुछ और् है
नये चावल का माड और उसपे बैगन का भर्ता...

ओह...
कम्बख्त मोबाईल
सारा गुड गोबर कर् दिया
बस एक् रिन्ग टोन ने ...
सारे ख्वाब चुर कर् दिये

अभी तो मुझे

रीतवा फूआ के पास जाना था
सुना है उनको गठीया हो गया है
उनका एक बेटा बाहर रहता है
ईधर पैसे भी नही भेजे दो तीन महीनो से...

और फिर
भोलवा के पास भी तो जाना था
बहुत ही बचपन वाला दोस्त है
पिछले हफ्ते शादी थी
नही जा पाया...
नाराज है मुझसे
कैसे समझाउ
वर्क प्रेशर, कलायन्ट

चलो कोई नही
एक गहरी सास लेते है
बाबा रामदेव वाला नही...
वो वाला जो
ईन्सान बेबसी मे लेता है