Monday, May 31, 2010

मेरा गाव मेरा देश


आज फिर से एक् ब्लाग लिखने का जोश चढा (ये जोश मुझे रोहीत के ब्लाग से ही आती है क्योकी उसपे काफी विजीटर जो आते है और उसके बाद एडसेन्स् से पैसा मेरे नाम पे :) उसका अकाउन्ट जो ब्लाक है! )खैर हर कोई डॉ .अनुराग की तरह शब्दो की जादुगरी तो नही कर सकता लेकीन ख्याली पुलाव पकाने मे क्या जाता है, काफी मत्था मारने के बाद भी कहानी का कोई प्लाट ही नही सुझ रहा था वैसे भी अपन कोई बहुत बडे तुर्रम खां तो है नही जो कुछ भी लिख दे तो चल जायेगा,


पिताजी ने बडी शिद्दत से लिची भीजवाई है अपने पेड के फल खाने क मजा ही कुछ और है वो बाजार के करवाईड मे पके फल कभी नही दे सकते । साथ मे माता जी का ईन्स्ट्रक्शन भी आया है ज्यादा पानी मत पीना खाने के बाद...चाहे आप जितने भी बडे हो जाओ मां की नसीहतो से छुटकारा तो कभी नही मिलता और कभी बुरा भी नही लगता, ईस भाग दौड भरी जिन्दगी मे कोई तो बिना स्वार्थ के सोचता है।


खैर ईन सारी बातो को छोड कर बस लीची खाने मे लग गया... पुराने दिन याद आ गये... कैसे पुरे पुरे दिन नदी के किनारे हुल्लड मचाते हुये दिन मस्ती मे कट जाते थे हमने तो कभी सपने मे भी नही सोचा था की हम गाव् छोड किसी शहर के हो जायेगे, वो पीपल के पेड के नीचे बैठ कर जो प्लानिंग करते थे कि कैसे आम चुराना है आज रात को, कैसे सटहु काका को डराना है.. वैसी प्लानिंग तो आई आई एम भी ना सिखा पाये। आज हम खुद परदेशी हो गये। अब तो सिर्फ छठ और् होली मे ही जाना हो पाता है... आज भी कुछ नही बदला गाव मे सुबह सुबह मुर्गे अभी भी बाग देते है, ननकु अभी भी 3 बजे भोर मे उठता है गायो को खिलाने,आज भी सब घ़र छोड दूआरे पर् सोते है,पण्डितजी आज भी हनुमान चालीसा लाउड स्पीकर मे 4 बजे से बजाते है, माताजी का कम्पीटीटर् आज भी सुर्य देवता ही है,आज भी सभी माड भात खाते है, खलिहानो मे कबड्डी आज भी होती है,भारत के मैच हारने के बाद मातम आज भी मनाते है, शाम को पिताजी आज भी बेसन वाली जलेबी लाते है... बस अब हम ही ना रहे वैसे...वक्त सबको बदल देता है..मुझे बदला... दुनिया बदली... पर मेरे गाव को नही बदल पाया.