Tuesday, August 26, 2008
कुछ तो सोचो
आज हमारा देश अपने ६० सालो के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है| हमने जिनको अपने देश का प्रतिनिधित्व करने को भेजा वे कुपमँडुक कि तरह बैठ कर अपना राग अलाप रहे है| काश्मीर की समस्या कोई आज की नही है ये हमारे पुरखो के द्वारा विरासत मे दी गई सौगात है और हम पुरे ६० सालो मे भी ईसे सुलझा न सके तो हम दोष किसे दे, मुझे लगता है ईन सभी समस्याओ के पीछे कही न कही हम सब जिम्मेवार है, जब कभी भी हमारे भागीदारी की बात आती है तो हम ये बोलकर पीछे हो लेते है की ईस देश का कुछ नही हो सकता और ईस तरह हम अपने जिम्मेवारि से मुँह चुरा लेते है| पता नही कब तक एसा करते रहेगे, कब तक १ स्वर्ण १ कांस्य १ रजत से संतोष करते रहेगे| १ अरब की आबादी से हम ५० लोग नही निकाल सकते जो कुछ कर सके|
पुरी दुनियाँ जानती है कि काश्मीर मे क्या हो रहा है, लेकिन हमारे गृह मंत्री जी को वहा पर सब कुछ सही नजर आता है उनका कहना है की संघर्ष समिती जो तिरंगा ले कर नारे लगा रही है और तथाकथित अलगाववादी जो पाकिस्तानी झंडे ले कर मुजफ्फराबाद चलो के नारे लगा रही है दोनो एक है| भगवान उनको सदबुधी दे पता नही हम शुरु से ही रक्षात्मक क्यो हो गये चाहे वो शाहबानो का मामला हो या समान नागरिक संहिता, हमेशा से फैसला वोटो की राजनीति को देखते हुये ही किया गया| आज़ जब जरुरत हमे कडे कदम उठाने की है तो हम ईन्तजार करो की नीति अपना रहे है| ये परिचायक है हमारे घटीया घरेलु नीति की, जब हम अपने घरेलु समस्यओ खुद नही निपटा नही सकते तो आप कैसे सोचते हो की आपकी विदेश नीति पे कोई भरोसा करेगा, हमारे नेता भले ही यह बोलकर पीठ ठोक ले की हम एशिया मे एक बडे भाई की तरह है पर यह हकिकत से कोशो दुर है हमारी स्थिति श्रीलंका और बांग्लादेश कही बद्तर है| कम से कम उनकी पह्चान एक अविकसित देश की तरह तो है पर हम तो अपने आप को कही भी नही रख सकते है| ध्न्य है हमारे देश के नेता और हम जो ईन्हे नेता बनाते है|
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