जब हम मिले वो दिन खुब थे
चारो तरफ़ रंगिनीयाँ थी
घूमते रहें...
ख्वाबो की तंग गलियों से कभी निकले ही नही
बस चलते गये
टूटा ख्वाब ...
गहरी हुई बोझिल परछाईयाँ
गहरी हुई बोझिल परछाईयाँ
कलतक जिन अदाओं पे मरते थे
वो बोझिल से हो चले...
फासले अब अपने दरमिया बढ़ते ही गए ...
पर ...
अब खत्म हो सफर
ये चाहत नही मेरी...
बस...
दुआ है यही ...
यु ही सही,
सफर जिंदगानी का
कटता रहे
हमें बस
इस बात का गुमां रहे
हमसफर अपने साथ तो है
इस बात का गुमां रहे
हमसफर अपने साथ तो है
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