Monday, July 6, 2009

बाईनरी के दिन

वो दिन भी क्या खुब थे
आलासाए हुये से कम्पनी मे आना
और पुरी रात उघते हुये गुजारना
रुटीन के साथ सबका
फोन पे अटकना
और आकर मुझसे बोलना
यार वो कुछ ज्यादा ही फोन नही करता...

वो काफी लेने के बहाने
काल सेन्टर के लड्कियो का ईन्तजार करना
और लड्कियो के आते ही
नौ दो ग्यारह होना
वो नीरज का जुल्फो का झटकना
बात-बात पे विवेक का गुस्से से कुदकना
रवि का वो भोजपुरी गानो से सबको पकाना
और नीरज का बोलना
आज मेरे हाथो मर्ड्रर होगा


और वो दद्दु का आचानक आ जाना
और साथ मे झा जी का मैसेज


"Daddu is coming"

फिर विवेक का
वेबसाईट मिनिमाईज करना
और फिर दद्दु का पूछना
आप सोये नही क्या आज...

वो रोहीत के गाने
वो नीरज की गजले
विवेक की मोबाईल
और सुमित की चैटींग
उसपे
गगन की चीटिंग (सुमित के और्कुट प्रोफाईल से)
वो अविनाश जी का कान्टेन्ट
वो सुमित का स्क्रैप
वो झा जी का चेयर से गिरना
और पाण्डे का आना
और साथ मे पिल्लु को लाना
रोहीत से मोबाईल का डाटा केबल लेना
फ्राईडे की ईवनिग को शेरी सर का बोलना
सालो कुछ तो काम करलो
फिर बाद मे नीरज का कहना
बेटे तु तो मुझे निकलवा के रहेगा...
और नीरज के जाते ही विवेक और रोहित का फोटोशेसन की तैयारी करना
हर पोज मे
शायद हम सब पास मे ही है
नही है कुछ तो कम्बख्त समय
ये यादे शायद धुधं्ली ही सही
पर मिटेगी नही

6 comments:

Vivek said...

Dhiraj mere bhai,
Thanks so much for refreshing those memories. Really those were amazing & unforgettable moments of our professional life. We've learnt a lot, earn a lot & slept a lot at that time.. ;-)
I'm really missing you all here in Mumbai. Wishing you all (D,N,G,S,R) Good luck in your professional and personal life... Cheers!

travel30 said...

wow amazing post .. How can I forget those days.. raat ko sab ke sath andhere mein bhatakna, mera aur vivek sir ka itni sardi mein kaapte hue parathe wale ko talashne jana :D, 1 ghante ka dinner phir raat ko teraace mein garm coffee ke waqt bitana, sumit ka online ladkiya patana :D
ek doosre ki tang khichna, bad e pyare din the sach, hamare roz roz ke photo session wahhhhhhh

Niraj Kumar Singh said...

Dhiraj its really a nice post remembering the whole time in a flash back manner in fronts of eyes. Still people remember the life at Binary that too in an enjoyable manner.

धीरज चौरसिया said...

एकदम सही, मै भी ऐसे ही सोच रहा था की सबके सब धीरे धीरे अपनी जिन्दगी मे मस्त हो जाते है, पुरानी यादो के सहेज कर रखना भी मुशिकल होता है, वक्त की कमी जगजाहिर है|
सुमित से पुछो ईसे अभी भी यही डर है की कोई पढ न ले.....
हा हा
रोहीत बेटे बच के
चैट पे तुरन्त आया था..सुमित
reply

हरकीरत ' हीर' said...

वो काफी लेने के बहाने
काल सेन्टर के लड्कियो का ईन्तजार करना
और लड्कियो के आते ही
नौ दो ग्यारह होना
वो नीरज का जुल्फो का झटकना
बात-बात पे विवेक का गुस्से से कुदकना
रवि का वो भोजपुरी गानो से सबको पकाना
और नीरज का बोलना
आज मेरे हाथो मर्ड्रर होग

बहुत खूब ......!!

हरकीरत ' हीर' said...

अपनी बुआ को मेरी ये रचना भेंट कर मेरा नमन दीजियेगा ......!!